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Phool Singh

Classics Inspirational

5  

Phool Singh

Classics Inspirational

सिखों के महान गुरुओं की गाथा

सिखों के महान गुरुओं की गाथा

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गुरु प्रथा को आज यहाँ, मैं काव्य रूप में कहता हूँ 

क्षमा माँगता कर जोड़कर, जो कुछ गलत कह जाता हूँ।।


शीश झुकाऊँ गुरु चरण में, आज यहाँ गुरु की महिमा कहता हूँ   

अंतरात्मा पवित्र है मेरी, जिसे गंगा सी पवित्र बतलाता हूँ।।


हिंदू-इस्लाम से अलग धर्म एक, जिसे सिख धर्म बतलाता हूँ 

पहले गुरु थे नानकदेव जी, धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ शाहिब’ मैं कहता हूँ।।


तलवंडी में जन्म जो पाये, आज ननकाना उसे कहता हूँ 

कर्तारपुर एक शहर पाक का, जहाँ उनका समाधि स्थल पाता हूँ।।


प्रखर बुद्धि के धनी गुरु जी, जिन्हे मन-विषयों से उदासीन पाता हूँ

आध्यात्मिक चिन्तन में वक़्त गुजारते, समर्पित जीवन मानव सेवा में कहता हूँ।।


दूसरे गुरु थे अंगददेव जी, जन्मदाता गुरुमुखी व लंगर प्रथा का पाता हूँ 

उत्तराधिकारी गुरु नानकदेव के, जिनका लहिणा नाम भी कहता हूँ।।  


शुरू करते मल्ल-अखाड़ा प्रथा, जीवन कठिनाई भरा मै पाता हूँ  

साहित्य केन्द्रों की स्थापना करते, प्राप्त जिससे सिख धर्म को शक्ति कहता हूँ।।


तीसरे गुरु बने अमरदास जी, मिला अंर्तजातीय-पुनर्विवाह को बढ़ावा पाता हूँ 

जाति-सतीप्रथा पर घात किए जो, गुरुगद्दी का सच्चा उत्तराधिकारी उन्हे कहता हूँ।।


सेवा-समर्पण दिल में जागा, शब्द गुरु नानकदेव की महिमा गाता हूँ 

बुराइयों के खिलाफ आंदोलन चलाये, जिसे स्वस्थ विकास में अवरोध बड़ा मैं कहता हूँ।।


बहुत गरीब परिवार के बेटे, जिन्हें गुरु अमरदास का दामाद कहता हूँ  

प्रसिद्ध हो गये भक्ति-सेवा से, गुरु रामदास जी को चौथा गुरु मैं पाता हूँ।।


जमीनें खरीदी जमींदारों से, वहाँ नियुक्त बूढाजी को मैं पाता हूँ 

अमृत सरोवर एक नगर बसाया, आज जिसका नाम अमृतसर कहता हूँ।।


पांचवे गुरु थे अर्जुन देव जी, निर्माणकर्ता हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर) का कहता हूँ  

अत्यंत यातनाएं जहाँगीर से पाते, उनका बलिदान बड़ा मैं पाता हूँ।।


संकलित करते गुरुओं की वाणी, महत्तव सुखमनी साहिब का कहता हूँ  

शांति को संदेश सुनाती, नाम जिसका सुखों की मणि मैं पाता हूँ।।


अर्जुनदेव के पुत्र गुरु हरगोविंद जी, महारत हासिल अस्त्र-शस्त्रों में जिनकी कहता हूँ 

हत्या करा दी जहाँगीर ने उनकी, क्रांतिकारी जिन्हे एक महान यौद्धा पाता हूँ।।


अकाल तख्त का निर्माण कराते, हमेशा जिन्हे शान्त-अभय-अडोल मैं कहता हूँ 

पराजित करते मुगल सेना को, संस्थापक नानकराज बतलाता हूँ।।

 

बाबा गुरदिता के छोटे बेटे, मददगार जिन्हें दारा शिकोह का पाता हूँ 

गुरु हरराय जी वो कहलाए, सिखों के सातवें गुरु उन्हें कहता हूँ।।


आध्यात्मिक एक राष्ट्रवादी, सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचालक कहता हूँ  

स्थापना करते अस्पताल व अनसुधान केन्द्र की, जिनसे सिख योद्धाओं को पुरुस्कृत पाता हूँ।।


आतवें गुरू हरकिशन कहलाए, जिनका शासन तीन वर्ष ही कहता हूँ 

भगवद्गीता के महाज्ञानी, करते अहं ब्राह्मणों का चूर मैं पाता हूँ।।


जनों की सेवा का अभियान चलाते, न भेद वर्ण-उंच-नीच का कहता हूँ  

उत्तराधिकारी बाबा बकाला बनाए, जब उन्हें प्राण त्यागते पाता हूँ।।


सत्य-ज्ञान के प्रचार-प्रसार का, जिम्मा गुरु तेग बहादुर के शीश पर पाता हूँ  

उद्धार किया भाई मलूकदास का, जिन्हे नौवाँ गुरु मैं कहता हूँ।।

  

कबूल किया न इस्लाम धर्म को, विरोध किया जो औरंगजेब का पाता हूँ  

शीश कटा दिया धर्म रक्षा में, जिन्हे हिन्द की चादर कहता हूँ।। 


अंतिम गुरु थे गुरु गोविंद जी, सुत गुरु तेग बहादुर के प्यारे कहता हूँ  

तलवार उठाए जो पिता की खातिर, उन्हे अंतिम गुरु मैं पाता हूँ।।   


खात्मा करते जो पाप-अन्याय-अत्याचार का, जिन्हे अतुलीय यौद्धा कहता हूँ  

खालसा पंथ के बने संरक्षक, जिन्हे पाँच ककारों (केश, कंघा,कड़ा,किरपान, कच्चेरा) का उपदेशक पाता हूँ।।


धोखे पठान का समझ सके न, उन्हे अहिंसा का पुजारी कहता हूँ 

नैतिकता-निडरता-आध्यात्मिक जागृति के प्रकाशक, उन्हे दिव्य ज्योति में लीन मैं पाता हूँ।। 


गुरु प्रथा को आज यहाँ, मैं काव्य रूप में कहता हूँ 

क्षमा माँगता कर जोड़कर, जो कुछ गलत कह जाता हूँ।।


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