श्रीमद्भागवत - २०८; गोकुल से वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार
श्रीमद्भागवत - २०८; गोकुल से वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार
श्रीशुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
भयंकर शब्द हुआ, वृक्ष गिरने से
वहां पर खड़े गोपों ने सुना
और सुना था नन्दबाबा ने ।
सब के सब भयभीत होकर फिर
उन वृक्षों के पास गए थे
दोनों अर्जुन वृक्ष गिरे पड़े हैं
वहां जाकर देखा उन्होंने ।
यद्यपि श्री कृष्ण वहां पर
उनमें फंसे ऊखल को खींच रहे
परन्तु इनके गिरने का कारण
वे लोग समझ न सके ।
सोच रहे ये किस का काम है
आश्चर्यचकित घटना कैसे घाटी ये
बुद्धि उनकी भ्रमित हो गयी
देखा कुछ बालक वहां खेल रहे ।
बालकों ने कहा, कन्हैया का काम ये
बीच में आकर दोनों वृक्षों के
जब था ये ऊखल फँस गया
खींचा उसने तो वृक्ष गिर पड़े ।
हमने तो इसमें से निकलते
देखे हैं दो पुरुष भी
परन्तु उन गोपों ने तब
बात नहीं मानी बालकों की ।
कहने लगे नन्हा सा बालक
इतने बड़े वृक्षों को उखाड ले
ये तो संभव नहीं है
तभी देखा वहां नंदबाबा ने ।
कि कृष्ण अभी भी बंधे ऊखल से
रस्सी की गांठें खोल दीं
कृष्ण को अपनी गोद में लिया
उनको लेकर घर चले गए सभी ।
सर्वशक्तिमान भगवान् व्रज की
गोपिओं के फुसलाने से
साधारण बालकों के समान नाचते
कभी मस्ती में गाते वे ।
उनके सर्वथा अधीन हो गए
और इस प्रकार बाललीलाओं से
व्रजवासिओं को आनंदित करते
प्रेम भाव से भर देते उन्हें ।
एक दिन एक फूल बेचने वाली
पुकार रही ‘ मेरे फल ले लो’
समस्त कर्मों का फल देने वाले
सुनकर ये दौड़ पड़े वो ।
फल खरीदने के लिए उन्होंने
अपनी छोटी छोटी अंजलियों में
अनाज लिया और चल पड़े
फल वाली को ये दे, फल लेने ।
अनाज रास्ते में ही बिखर गया
परन्तु फल बेचने वाली ने
उनके हाथ फल से भर दिए
टोकरी रत्नों से भरी उसकी उन्होंने ।
एक दिन कृष्ण और बलराम जी
यमुना तट पर गए खेलने
रोहिणी जी ने पुकारा था इन्हें
पर वे खेलने में ही लगे रहे ।
यशोदा को भेजा था फिर रोहिणी ने
यशोदा बोलीं, कन्हैया आ जाओ
भूख लगी होगी अब तुमको
आकर अब खाना खा जाओ ।
जल्दी से आकर स्नान करो
जन्म नक्षत्र है आज तुम्हारा
ब्राह्मणों को गौ दान करो
आशीर्वाद तुम लो फिर उनका ।
ऐसा कह कर एक हाथ से
कृष्ण को, दुसरे से बलराम को
पकड़ कर घर ले आईं यशोदा
किया सब मंगल कर्मों को ।
अब नंदबाबा आदि गोपों ने
देखा उत्पात हो रहे गोकुल में
सब लोग इकट्ठे होकर
ये विचार करने लगे वे ।
व्रजवासियों को क्या करना चाहिए
एक गोप उपनन्द थे उनमें
अवस्था में तो बड़े थे ही वो
ज्ञान में भी वे बड़े थे ।
उन्होंने कहा, भाइयो अब यहाँ
बड़े बड़े उत्पात हो रहे
और हमारे बच्चों के लिए
बहुत ही अनिष्ट सभी ये ।
इसलिए हम लोग यदि अपना भला चाहें
तो कूच यहाँ से कर लेना चाहिए
देखो यह बालक कृष्ण बचा
मरते मरते, कितनी विपत्तिओं से ।
यही समझना चाहिए हमें कि
हमारी रक्षा की है भगवान् ने
इसे देखते हुए यहाँ से
अन्यंत्र चले जाना चाहिए हमें ।
वृन्दावन नाम का एक वन है
बहुत ही पवित्र पर्वत वहां
पशुओं के लिए बहुत हितकारी
चारा बहुत और हरी नरम पत्तियां ।
गोप गोपियों के लिए भी
सेवन करने योग्य स्थान वो
यदि जंचती हो बात ये मेरी
आज ही वहां के लिए कुछ करो ।
उपनन्द की बात सुनकर सबने
‘ ठीक है ‘, कहकर सहमति दे दी
छकड़ों पर सब सामग्री लादकर
वृन्दावन की तब यात्रा की ।
वृन्दावन बड़ा ही सुंदर
हर ऋतु में हरा भरा रहता
वहां बड़ा सुख ही सुख है
गोवर्धन पर्वत भी है वहां ।
यमुना जी भी बहती वहांपर
ये सब देख कृष्ण, बलराम के
ह्रदय में उत्तम प्रीती का उदय हुआ
ये सब उनको बहुत भा गए ।
थोड़े ही दिनों में वृन्दावन में
दोनों बछड़ों को चराते
कभी गोपों के संग खेलते
कभी बांसुरी थे बजाते ।
एक दिन ग्वालवालों के साथ में
यमुनातट पर बछड़े चरा रहे
उसी समय एक दैत्य आया
उनको मारने की नियत से ।
भगवान् ने देखा, वह बछड़ा बनकर
मिल गया बछड़ों के झुण्ड में
आँखों का इशारा किया बलराम को
धीरे से पास पहुँच गए उसके ।
पिछले पैर और पूंछ पकड़कर
आकाश में उसको था घुमाया
और जब वो मर गया तो
उसे वृक्ष पर पटक दिया था ।
लम्बा तगड़ा दैत्य शरीर उसका
बहुत से कैथ के वृक्षों को लेकर गिरा
वत्सासुर को मरा देखकर
आश्चर्यचकित हुए ग्वाले थे जो वहां ।
परीक्षित, तीनों लोकों के रक्षक
राम और श्याम, चरवाहे बने हुए
बछड़ों को पानी पिलाने
एक दिन जलाशय के तट पर गए ।
ग्वालवालों ने देखा वहां पर
बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ
ऐसे मालूम पड़ता था कि
पहाड़ का एक टुकड़ा पड़ा हुआ ।
ग्वालवाल उसे देख डर गए
बक नाम का असुर था वो
बगुले का रूप धारण कर
मारने आया था कृष्ण को ।
चोंच बड़ी तीखी थी उसकी
बड़ा बलवान था स्वयं वो
कृष्ण को देखते ही निगल गया
ग्वालवालों ने जब ये देखा तो ।
डरकर वे अचेत हो गए
परन्तु ये तो लीला कृष्ण की
आग के समान तालु जलने लगा
जब तालु के बीच पहुंचे बगुले की ।
तब उस दैत्य ने झटपट ही
उगल दिया उन्हें, क्रोध करने लगा
अपनी कठोर चोंच से उनपर
चोट करने के लिए टूट पड़ा ।
कंस का सखा बकासुर अभी
कृष्ण पर झपट ही रहा था
कि श्री कृष्ण ने दोनों हाथों से
चोंच के ठोरों को पकड़ लिया ।
ग्वालवालों के देखते देखते
चीर दिया उसे खेल खेल में
देवताओं को बड़ा आनंद हुआ
बरसाएं फूल और स्तुति करें वे ।
बलराम और कृष्ण के संग फिर
ग्वालवाल सब घर को गए
सारी घटना थी बतलायी
वहां सभी लोगों को उन्होंने ।
बकासुर वध की घटना सुनकर
आश्चर्चकित हुए गोप और गोपी
कहें, कई बार मृत्यु के मुँह से
निकल आया ये बालक यूँ ही ।
परन्तु अनिष्ट जो करना चाहे इसका
उसी का अनिष्ट हो जाता
महात्मा गर्गाचार्य ने जो कहा
सोलह आने ठीक कहा था ।
नंदबाबा और गोपगण सभी
राम, श्याम की बातें किया करते
आनंदित और तन्मय इसमें ही इतने कि
पता न चलें संसार के दुःख उन्हें ।