STORYMIRROR

AJAY AMITABH SUMAN

Classics

5  

AJAY AMITABH SUMAN

Classics

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:28

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:28

1 min
848

जब अश्वत्थामा ने अपने अंतर्मन की सलाह मान बाहुबल के स्थान पर स्वविवेक के उपयोग करने का निश्चय किया, उसको महादेव के सुलभ तुष्ट होने की प्रवृत्ति का भान तत्क्षण हीं हो गया। तो क्या अश्वत्थामा अहंकार भाव वशीभूत होकर हीं इस तथ्य के प्रति अबतक उदासीन रहा था?


तीव्र वेग से वह्नि आती क्या तुम तनकर रहते हो? 

तो भूतेश से अश्वत्थामा क्यों ठनकर यूँ  रहते हो?

क्यों युक्ति ऐसे रचते जिससे अति दुष्कर होता ध्येय, 

तुम तो ऐसे नहीं हो योद्धा रुद्र दीप्ति ना जिसको ज्ञेय?


जो विपक्ष को आन खड़े है तुम भैरव निज पक्ष करो।

और कर्म ना धृष्ट फला कर शिव जी को निष्पक्ष करो।

निष्प्रयोजन लड़कर इनसे लक्ष्य रुष्ट क्यों करते हो?

विरुपाक्ष भोले शंकर  भी तुष्ट नहीं क्यों करते  हो?


और विदित हो तुझको योद्धा तुम भी तो हो कैलाशी,

रूद्रपति का अंश है तुझमे तुम अनश्वर अविनाशी।

ध्यान करो जो अशुतोष हैं हर्षित  होते अति सत्वर, 

वो तेरे चित्त को उत्कंठित दान नहीं क्यों करते वर?


जय मार्ग पर विचलित होना मंजिल का अवसान नहीं,

वक्त पड़े तो झुक जाने में ना खोता स्वाभिमान कहीं।

अभिप्राय अभी पृथक दृष्ट जो तुम ना इससे घबड़ाओ,

महादेव परितुष्ट करो और मनचाहा तुम वर पाओ।


तब निज अंतर मन की बातों को सच में मैंने पहचाना ,

स्वविवेक में दीप्ति कैसी उस दिन हीं तत्क्षण ये जाना।

निज बुद्धि प्रतिरुद्ध अड़ा था स्व बाहु अभिमान रहा,

पर अब जाकर शिवशम्भू की शक्ति का परिज्ञान हुआ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics