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Vivek Netan

Romance Classics

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Vivek Netan

Romance Classics

उस रात युॅं लगा

उस रात युॅं लगा

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युॅं लगा था मुझे के शाम फिर से उदास रह गई 

मेरे प्यासे होंठों पे आज फिर कोई प्यास रह गई 

होले से छू गया मेरे सुर्ख गालों को वो इस तरह 

के मेरे पुरे बदन पर वो मीठी मीठी छुअन रह गई 


बड़ा मुश्किल था मचलते हुए अरमानों को थामना 

वो बाहों में आकर भी क्यों मुझ से दूर रह गई 

खो गई कही मेरी शिकायते, उलझने, किस्से सारे 

मेरे बदन में उसकी भीनी भीनी खुशबू सी रह गई 


एक आवारगी सी छाई थी उस दिन फ़िज़ा में 

उसकी चुप्पी और मेरी नम आँख सब कह गई 

काटने को दौड़ता था मुझे सन्नाटा मेरे घर का 

आज उसमे पायलों की छम छम सी रह गई 


ना जाने कैसा शोर था डूबती उतरती साँसों का 

मेरी बेचैन धड़कने खुद को संभालती ही रह गई 

सुन्न सा हो गया था मैं उसके लरजते होंठों से 

पता ना चला वो मेरे कानों में क्या क्या कह गई 


ठहर पाई नहीं कश्ती उस कयामत के सैलाब में 

थी दोनों की साँसे उफान पर और आँखें बंद हो गई 

नाग और चन्दन की तरह लिपटे थे दो जिस्म 

मथ गए गीले शिकवे बस सिलवटे ही रह गई 


गवाह है मेरे जिस्म का जर्रा जर्रा उस रात का 

उस रात युॅं लगा के कितनी सदियाँ गुजर गई 

लगा कुछ युॅं के पूरी कायनात मेरे पहलु में है 

मगर बेदर्द सुबह आ के कुछ शर्मिन्दा सा कर गई 


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