आखिर तुम हो कौन?
आखिर तुम हो कौन?
आखिर तुम हो कौन ?
आज भी तेरी बातों को
तेरी यादों को भुला नही पा रहा हूँ
छोडो तुम्हें ये क्यों बता रहा हूँ
आखिर तुम हो कौन ?
उसने मुझे ही काबिल बनाया
मुझे जीना सिखाया,हँसना सिखाया
उसे फिर ये जता क्यों रहा हूँ
छोडो तुम्हें ये बता रहा हूँ
आखिर तुम हो कौन ?
वक्त रहता था तेरी गोद में सो जाते थे
एक दूजे मिल बैठ के संग खाते थे
उन घी लगी रोटियों की याद क्यों दिला रहा हूँ
छोडो तुम्हें ये क्यों बता रहा हूँ
आखिर तुम हो कौन ?
तन्हा होकर अक्सर बातें करता था तुम्हारी
चाँद,सितारों को बैठाकर तारीफ करता था तुम्हारी
उन तारीफ भरे लफ्जों को क्यों सुना रहा हूँ
छोड़ो तुम्हें ये क्यों बता रहा हूँ
आखिर तुम हो कौन ?
तुझे अपने प्रेम-गीतों में संगीत बनाया
तुझे अपने संग जीने का मीत बनाया
गीतों में पिरोकर, तुझे ही गाता जा रहा हूँ
छोड़ो तुम्हें ये क्यों बता रहा हूँ
आखिर तुम हो कौन ?
आखिर तुम हो कौन ?

