आया है बसंत
आया है बसंत
बाहर पीले फूल खिले हैं,
बयार के सुगंध से हुए सिलसिले हैं।
ओढ़ी है चूनर प्रकति ने बसंती
तरुणी लागे है ज्यूँ लाजवंती।।
ह्रदय छेड़ता है प्रणय तान
निर्जीव में डाल कर फिर प्राण।
शीत की छुअन लगे थोड़ी कम
मौसम पर छाने लगा है यौवन।।
खेतों में सरसों यूं लहराई
जैसे खाये हिलोरें तरुणाई
मौसम मन का लगे सुहाना
सुंदर स्मृतियों का ताना बाना।
और ऐसे में एक आहट,,
आया है बसंत
तुमको तो आना ही है।
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