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Anita Sharma

Romance

4  

Anita Sharma

Romance

स्वप्न या भ्रम

स्वप्न या भ्रम

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हर रोज़ पहुँच जाती हूँ 

उस श्वेत निर्मल घरोंदे में 

न जाने किस जन्म की कहानी 

शायद कैद है उन दीवारों में 


जहाँ पहुँच कर अतीत के पन्ने 

करवटों की तरह बदलते है 

शीतल पवन निर्मल सी बहती है 

पुकारती हो जैसे मेरी पहचान को


वो बयार कुछ फुसफुसाती है 

जैसे अतरंगता मेरे प्रेम की 

बयान करके चली जाती हैं 

कोई याद मेरे पूर्वजन्म की


सिमटी है उन गलियारों में

क्या कोई रूहानी ताकत

मुझको बार बार बुलाती है

क्या अतीत था मुझसे जुड़ा 


या प्रेम था कोई अधूरा सा

भ्रम के मायाजाल में 

शायद बसी ये नगरी

जो तड़प मुझमें जगाती है 


बरबस खींचती हुई अपनी ओर

नींद के आगोश में ले जाती है

कोई तो है जो मुझे बुलाता है 

क्यों बार बार ये सुन्दर महल 


मेरे सपनो में आता जाता है 

भटकती हूँ ढूंढ़ती हूँ

इंतज़ार करती हूँ रोज़ 

कोई तो हल निकले 


मेरे सवालों के घेरे को तोड़कर 

मेरा हमसफ़र कोई हो तो निकले 

मेरे अंतर्मन में द्वंद सा है

कुछ तो जानू

क्या मेरे वजूद से जुड़ा 

वो सपना है या कोई भ्रम मेरा।


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