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Vibhu Gaur

Romance

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Vibhu Gaur

Romance

मैं यहीं हूँ माँ

मैं यहीं हूँ माँ

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चिड़िया कहना ठीक था

या माता का दर्जा जो दिया

इसी कशमकश का शिकार यह देश

जहर का प्याला जो पिया


पूत सपूत सब एक समान

रिश्तों में ना फर्क किया

आँचल में सुलाया सबको

अपने हिस्से का निवाला भी दिया


कहते सुना है मैंने अकसर

जान हैं ये हमारी

जान के टुकड़े उठा रहा हूँ आज

माफ करदे माँ, मेरी लाचारी

आँचल की छाँव

हाथों की नरमी


भूल गये हैं ये मदहोश नादान

हवा का रुख भी अलग सा है कुछ

कागज के टुकड़ों में

खो गया तेरा सम्मान

दिल तो किया


जंग का करदूँ ऐलान

बेबसी का आलम देख

होता रोज़ जो परेशान

नहीं देखी जाती तेरी दुर्दशा माँ

निकल पड़ा हूँ एक खोज में

इन नासमझों की दुनिया से दूर

सम्मान तेरा खोजने


तू सिसकियाँ ना भर माँ

इन पत्थरों को छोड़ दे

जो टुकड़े तेरे हैं किये

उनकों हीं लगा हूँ जोड़ने

थक गया हूँ अब बहुत माँ

गोद तेरी चाहिए

इन टुकड़ों को समेटे हुए

तलाश में सम्मान की

मैं दूर निकल आया हूँ

मैं तेरा ही तो साया हूँ


तू देख मेरी ओर माँ

क्या दिखता तुझे संसार है

तेरा ही मैं अंश हूँ

अनोखा हमारा प्यार है।


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