दशरथनंदन के रामराज्य का युग
दशरथनंदन के रामराज्य का युग
दशरथ नंदन रघुपति का युग , रामराज्य कहलाया।
पूर्ण किए सुत पितु वचनों को, सिंहासन ठुकराया ।।
हुए राम हँसकर बैरागी , सीता सह वनवासी।
भ्रात लखन प्रिय ,दुख के संगी,हुए सदा विश्वासी।।
महलों के रहने वालों ने , वन से रिश्ता पाया ।
दशरथनंदन रघुपति का युग ,रामराज्य कहलाया।।
आत्म ग्लानि से भरत जूझते, घना हुआ अँधियारा ।
कमलनयन के पद-पंकज ने, भरा ज्ञान-उजियारा।।
प्रीति भरत लेकर लौटे तब, गिन-गिन वर्ष बिताया ।
दशरथनन्दन रघुपति का युग, रामराज्य कहलाया।।
भरत सदा भू से नीचे सो, हिय का शासन देते।
त्यागे माता अरु सुख सारे , खुद से बदला लेते ।।
मुख से रघुवर पीर न कहते, रज-कानन हर्षाया ।
दशरथनंदन रघुपति का युग ,रामराज्य कहलाया।।
भाग्य जगत् के जाग उठे शुचि, रामचंद्र अवतारी।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीपति, मोह नहीं संसारी ।।
संग सिया धरती पर आये, पावन धरा बनाया ।
दशरथ नंदन रघुपति का युग,रामराज्य कहलाया।।