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vartika agrawal

Classics

5  

vartika agrawal

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दशरथनंदन के रामराज्य का युग

दशरथनंदन के रामराज्य का युग

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दशरथ नंदन रघुपति का युग , रामराज्य कहलाया।

पूर्ण किए सुत पितु वचनों को, सिंहासन ठुकराया ।।


हुए राम  हँसकर बैरागी , सीता सह वनवासी।

भ्रात लखन प्रिय ,दुख के संगी,हुए सदा विश्वासी।।

महलों के रहने वालों ने ,   वन से रिश्ता पाया ।

दशरथनंदन रघुपति का युग ,रामराज्य कहलाया।।


आत्म ग्लानि से भरत जूझते, घना हुआ अँधियारा ।

कमलनयन के पद-पंकज ने, भरा ज्ञान-उजियारा।।

प्रीति भरत लेकर लौटे तब, गिन-गिन वर्ष बिताया ।

दशरथनन्दन रघुपति का युग, रामराज्य कहलाया।।


भरत सदा भू से नीचे सो,  हिय का शासन देते।

त्यागे माता अरु सुख सारे , खुद से बदला लेते ।।

मुख से रघुवर पीर न कहते, रज-कानन हर्षाया ।

दशरथनंदन रघुपति का युग ,रामराज्य कहलाया।।


भाग्य जगत् के जाग उठे शुचि, रामचंद्र अवतारी।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीपति,  मोह नहीं संसारी ।।

संग सिया धरती पर आये,  पावन धरा बनाया ।

दशरथ नंदन रघुपति का युग,रामराज्य कहलाया।।


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