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vartika agrawal

Classics

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vartika agrawal

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वृंदा

वृंदा

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एक कथा लिखती यहाँ,वृंदा जिसका नाम।

वृंदा परिणय सूत्र बँध,गयी जलंधर धाम।

दनुज जलंधर ने किया ,पग- पग पर बस युद्ध--

त्रस्त जगत् अरु देवता ,चाहे दनुज विराम।।


कमलनयन कह रोकते ,वृंदा सच्ची भक्त ।

वृंदा-दुख उनको लगे, नैन-अश्रु सम रक्त।

स्वीकारे प्रभु अंत में, धरे जलंधर रूप-- 

संहारे हरि दैत्य को,आया छल का वक्त।।


वृंदा छल को देखकर ,दे दी हरि को श्राप।

प्रस्तर बनकर प्रभु रहें,जीवन-भर अभिशाप।

माँ लक्ष्मी रोती रही ,ली वृंदा उर जीत--

संग जलंधर हो सती ,सही विरहिणी ताप।।


बहुत दिनों के बाद फिर,मँजरी थी शुचि धाम।

तुलसी उसका नाम था ,यात्रा यह अविराम।

ईश-भोग अब पूर्ण हो, जब हो तुलसी पत्र --

शालिग्राम सँग ब्याह है,वृंदा जिसका नाम।।



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