गीतिका
गीतिका
तेरे द्वारे आकर खुश हूँ, खुशियाँ हृदय विहारी में ।
औषधि बन उर लेप लगाए, सब पीतांबर धारी में ।
पीर हृदय के हर मिट जाए, ईश दृष्टि जब भी डाले ..
शरणागत बन जब जो जाए, डूबे कृष्ण- मुरारी में ।
भक्त हाथ जो खाली आता, प्रीत सदा भरती झोली--
देते भर-भर सब भक्तों को, जादू है अवतारी में ।
तीनों लोकों के स्वामी को, भक्त भक्ति से है जीते ..
कष्ट-पीर ग्रह, दोष-रोग सब, कटते जो है भारी में।
सरल करे हरि जीवन उसका, जो मन है सीधा-सादा--
उच्च-कोटि की सोच हमें दो, जन्म न यह लाचारी में।
