अलविदा
अलविदा
कहकर जग को अलविदा, जाता है इंसान।
धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।
अमर करो निज कर्म को, करे जगत् बस याद।
सिसके जग कह अलविदा, याद रहो तुम बाद।।
प्रीत-दीप जग में जला, सदा मिले शुचि मान।
धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।
ऐसा प्यारे कर चलो, नाम रखे निज शान।
क्रोध-जलन से दूर हो, बनो क्षमा की खान।।
अग्नि बुझे कब आग से, लेती है बस जान।
धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।
निर्मल जल से प्रिय बनो, रख बस प्रभु का रंग।
कर्म पारदर्शी रखो, चढ़े न सच पर जंग।।
आयत अरु आकार का, ईश्वर को अभिज्ञान।
धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।
