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vartika agrawal

Abstract

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vartika agrawal

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अलविदा

अलविदा

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कहकर जग को अलविदा, जाता है इंसान।

धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।


अमर करो निज कर्म को, करे जगत् बस याद।

सिसके जग कह अलविदा, याद रहो तुम बाद।। 

प्रीत-दीप जग में जला, सदा मिले शुचि मान।

धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।


ऐसा प्यारे कर चलो, नाम रखे निज शान।

क्रोध-जलन से दूर हो, बनो क्षमा की खान।।

अग्नि बुझे कब आग से, लेती है बस जान।

धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।


निर्मल जल से प्रिय बनो, रख बस प्रभु का रंग।

कर्म पारदर्शी रखो, चढ़े न सच पर जंग।।

आयत अरु आकार का, ईश्वर को अभिज्ञान।

धर्म-कर्म की वेदिका, पर परखे भगवान।।


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