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vartika agrawal

Classics

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vartika agrawal

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अवधपुरी

अवधपुरी

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रात अमावस की है काली, हवा संदली बहती है।

अवधपुरी श्री राम पधारे, हर्षित होकर कहती है।।


छिपे राह में काँटे-कंकर, भक्त राम के हैं चुनते।

चुभे न कोई पाहन प्रभु को, मंगल गीत यही बुनते।।

प्रीत सुगंधित आशाओं से,सुरभित हर कण रहती है।

अवधपुरी श्री राम पधारे,  हर्षित होकर कहती है।।


दीप जले है हर घर-द्वारे, रात-प्रभाती रघुवर से।

प्रेम-पुहुप उर झरता ऐसे,पारिजात सम तरुवर से।।

कौशल्या ले पूजा-थाली, पीर-हृदय जो सहती है।

अवधपुरी श्री राम पधारे, हर्षित होकर कहती है।।


उर्मि नयन से आँसू छलके,कहती मन को पिय आए।

करती लखन से हृदय शिकायत,नाथ हमारे तरसाए।।

देख लखन उर-पंछी ऐसे,  जैसे चिड़िया चहती है।

अवधपुरी श्री राम पधारे, हर्षित होकर कहती है।।


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