धूप- छाँव
धूप- छाँव
हमने उम्मीद को पलप ते देखा है,
सपनों से सचाई तक का सफ़र तय किया है ॥
नींद के मीठे सपने,
हक़ीक़त में बिखर ते देखा है ॥
नन्ही सी उम्मीद की कली पल्पी,
हमने आशयानों को संजोते देखा हैं ॥
पूरी ना हुई तमन्ना,
पर सपनो को सातवें असमान पर पहुँचते हुए देखा है ॥
संघर्ष और संयम की जंग को महसूस किया है,
५० ग्राम खुश के बदले १०० ग्राम
दुःख का बोझ उठाते लोगो को देखा है ॥
मिलता वही है जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है ….और
होता वही है जो सब के लिए अच्छा होता है ॥
ज़िंदगी है पेड़ जैसी,
वक्त आने पर धूप सी,
वक्त आने पर छाँव सी।।