गुलाब
गुलाब
तुम्हें सच में नहीं याद आता होगा वो ज़माना,
कितना आसान हो जाता है किसी को यूं ही भूल जाना
तुम पिला रहे हो जाम अपनी नजरों से अब गैरों को,
हम काफिर ढूंढते फिरते हैं फिर वही मयखाना
गुलाब भेजता कोई तो हम भी
शौक से मनाते ये मोहब्बत का त्यौहार
अब भेजे हैं गम लिफाफे में उसने तो
क्यों ना अब इसी का जश्न मनाया जाए
सुर्ख गुलाबी होठों वाली से एक गुलाब आया है,
सच कहूं तो यारो प्यार का सैलाब आया है
और सारी दुआएं कबूल हो गई है खुदा के दर पर,
जो सारे जहां से सुंदर मैंने महबूब पाया है।

