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ayush jain

Romance Classics

4  

ayush jain

Romance Classics

क्या इसे ही प्यार कहते हैं

क्या इसे ही प्यार कहते हैं

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कदम कदम पे तेरे दर्द सहते हैं,

क्या इसे ही प्यार कहते हैं ..


तुम्हारी हर ज़िद मानो तो खुश रहते हो तुम,

नाराज़ हो जाते हो अगर हम कुछ कहते हैं,

क्या इसे ही प्यार कहते हैं..


हिज्र काटा है मैंने भी रो रोकर औरों की तरह,

मगर उसने पूछा ये आंसू क्यूँ बहते हैं, क्या इसे ही प्यार कहते हैं..


और खुशकिस्मत हो जो इतना सब सह कर भी साथ हूँ मैं तुम्हारे,

वर्ना ऐसे रिश्ते ताश के पत्तों की तरह ढहते हैं, हाँ इसे ही प्यार कहते हैं।


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