ये दिसम्बर
ये दिसम्बर
फिर से तेरी याद और ये दिसम्बर..
फिर वही हालात और ये दिसम्बर..
बाहों में तेरी जो पल भर मे गुजर जाया करती थी..
कैसे काटू तन्हा ये रात और ये दिसम्बर..
उसके हर हर्फ में बस फिक्र हुआ करती थी मेरी..
कैसे भुला दू हर बात और ये दिसम्बर..
मुझे देखते ही वो नज़रे झुकाना और सहम जाना तेरा..
कैसे भुलाउ वो मुलाकात और ये दिसम्बर..
हाथों की लकीरें बताती है कि तू किस्मत में नहीं मेरी
बस तभी से कोस रहा हूँ ये हाथ और ये दिसम्बर..

