मातृ वंदना... (हरिगीतिका छंद)
मातृ वंदना... (हरिगीतिका छंद)
जननी जनन सहनीयता, नवजात की भव भाग्यता
वरदान हो मनु वंश का, सर्वत्र दक्ष कर्मण्यता
हे मात प्रभु समरुप्यता, हे अर्पणा सतविद्यता
पिय संगिनी सुमनुष्यता, अरधांगिनी समपूज्यता
तज वेदना तज तैषणा, परिवार होत सुलक्षणा
कर आज दूर कुलक्षणा, तज पाप को तज ईर्षणा
तुमसे सभी मम हर्ष है, हे हर्ष दाता हर्षिता
तव पाद में ममपूज्यता, हे मात तुल्य सुदर्शिता
हे अंबिका अंबालिका, हे अंग दाता अंगिका
हे मात शक्ति सुलब्धिका,पितु शब्द की आख्यायिका
कर कामना सुतसाधिका, हे बाल्य काल सुवासिता
निज दुग्ध से पय दुग्धिका, हे कर्मनिष्ठ सुसंस्कृता।
