STORYMIRROR

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

4  

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

तुम धड़कन

तुम धड़कन

1 min
177

तुम हो तो

सनम जा है

और क्या पूछते हो,

न करो मनमानी

न बनो नादां

छोड़ो तड़पाना 

क्यूँ ऐसे रूठते हो।


कहने को कहते हो

तुम मुझसे मेरी

तो सुुन लो बस

यह दिल की कही

गुम तुझमें है मेरा मन

तुमसे है साँसों की सरगम।


हम धुन में तुम्हारे 

न्योछावर तन कर देें

सनम यह कर विश्वास,

न मिलेगा साथी हमसा 

कई जन्म की गाथा में

यह अनकही कथा सा

हमारी तो इक

बस यही प्यास 


जब जब जीवन हो

तुम संगिनी संग हो

हरपल है यह आस।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract