STORYMIRROR

Anita Koiri

Abstract Classics Inspirational

4  

Anita Koiri

Abstract Classics Inspirational

बेहतर मैं

बेहतर मैं

1 min
209

अब अपने बारे में क्या लिखूं

अब अपना मैं क्या परिचय दूं

मैं तो सबके लिए बदलती रहती हूं

लेकिन मैं सबके लिए क्यों बदलूं।


मैंने देखा उसे रोते हुए

सोचा मैं उसे क्या पूछूं

चेहरा उसका देख डर जाती हूं

वो जानवर था, क्या उस चेहरे से पूछती हूं

मैं तो मुर्ख कहलाती हूं

मैं तो घरवाली कहलाती हूं

मैं बेखबर हर रोज़ रोटी बेलती हूं

शायद इसीलिए अज्ञानी कहलाती हूं

अब तो समझदार बन जा तू


अब भी बेखबर मत रह तू

अब भी बेसब्र मत रह तू

अब बेहतर बन जा तू

अब मैं चूड़ियां पहनना छोड़ चुकी हूं

अब मैं राखी बांधना भी भूल चुकी हूं

अब मैं बेहतर हूं मैं सिर्फ मैं हूं

अब मैं खुश हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract