बेहतर मैं
बेहतर मैं
अब अपने बारे में क्या लिखूं
अब अपना मैं क्या परिचय दूं
मैं तो सबके लिए बदलती रहती हूं
लेकिन मैं सबके लिए क्यों बदलूं।
मैंने देखा उसे रोते हुए
सोचा मैं उसे क्या पूछूं
चेहरा उसका देख डर जाती हूं
वो जानवर था, क्या उस चेहरे से पूछती हूं
मैं तो मुर्ख कहलाती हूं
मैं तो घरवाली कहलाती हूं
मैं बेखबर हर रोज़ रोटी बेलती हूं
शायद इसीलिए अज्ञानी कहलाती हूं
अब तो समझदार बन जा तू
अब भी बेखबर मत रह तू
अब भी बेसब्र मत रह तू
अब बेहतर बन जा तू
अब मैं चूड़ियां पहनना छोड़ चुकी हूं
अब मैं राखी बांधना भी भूल चुकी हूं
अब मैं बेहतर हूं मैं सिर्फ मैं हूं
अब मैं खुश हूं।
