नारी न निराश हो
नारी न निराश हो
डर लगता है उन बाहों से
जो चाहे जबरदस्ती छूना
डर लगता है उन बातों से
जो चाहे सदैव नीचा दिखाना
डर लगता है मुखौटे बाजों से
डर लगता है सूनसान सड़क पर
आवारा इंसानों और जानवरों से
डर लगता है बस स्टैंड पर
अकेले खड़े रहने से
डर लगता है ऑटो के भीतर
दो मर्दों के बीच बैठने से
डर लगता है उन भद्दी नजरों से
जो चीर जाए वस्त्र को आर-पार से
डर लगता है सांवली त्वचा पर टिप्पणियों से
डर लगता है गाली गलौज करने वालों से
बीच सड़क पर तमाशा बनाने वालों से
बस डर लगता है समाज के बदमाश लोगों से
डर लगता है सबसे ज्यादा भूख और बेकारी से
पता है क्योंकि कुछ न बदलेगा मेरी इन बकवासों से
डरो मत थोड़ा साहस धरो
नारी हो न निराश करो मन को।