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Poet msasellah

Classics

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Poet msasellah

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रैन

रैन

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झमाझम पल में धरती पर जन्नत को

फिर से खुश करने की बारिश..


जिस पल मोतियों की रोशनी

चेहरे पर धीरे-धीरे चमकती है..


जब बदन पर पड़ती है तो

बारिश में नई सांसें बढ़ जाती हैं..


मैं ही नहीं बल्कि मैं भी धरती

अपनी सुख की प्यास से हंसती है।


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