हंस मोती चुगता...।
हंस मोती चुगता...।
पहाड़ की गोरी,
घर से निकलती थी,
चोरी चोरी।
नहीं मिल पाती थी,
अपने आशिक से,
कैद रहती थी,
पहरेदारों में।
उसका आंशिक था,
बहुत मतवाला,
उससे मिलने को,
रहता था उतावला।
लेकिन समाज के ठेकेदार,
उसको लेते थे,
आड़े हाथ।
आंशिक ने पाला,
एक हंस,
जो चुगता था,
केबल मोती।
हंस उड़ जाता,
गोरी के देश,
आंशिक का लेकर संदेश।
गोरी उस हंस को देख,
बाग में आ जाती,
मोती की माला,
गले से निकालती,
और हंस को दिखाती।
हंस समझ जाता,
गोरी का संकेत।
आ जाता फुदकता,
गोरी के पास,
गोरी बिठा लेती,
उसे अपने पास।
पढ़ लेती संदेश,
हंस माला से,
चुग लेता मोती,
और उड़ जाता,
वापस अपने देश।
