।।राम रावण युद्ध।।
।।राम रावण युद्ध।।
युद्ध भयंकर हो रहा देखो,चल रहे तीरन पर खूब तीर।
कोऊ काहू से कम न है,दोनों योद्धा अति बलबीर।
राम प्रभू मायावी रावण का, युद्ध हुआ है अति गंभीर।
कभी आसमां कभी धरा पर,स्थिर न रहता रणधीर।
ऐसा अद्भुत युद्ध देख कर,थम गए योद्धा समर के बीच।
देख रहे दोनों दल योद्धा,आश्चर्य से सब मुट्ठी भीच।
अपने अपने नायक की,कर रहे मुख से खूब तारीफ।
एक दूजे को बुरा बताते,अपने की खूब करते तारीफ।
एक दूजे पर जुगत लगाते,कैसे पाएॅ॑ इस पर जीत।
बड़े धुरंधर योद्धा दोनों,बहुत दिनों तक रहे अजीत।
करी मंत्रना तभी प्रभू ने,रावण तो है अति बलबीर।
कई दिनों तक चली लड़ाई,लगा न रावण को एक तीर।
कैसे पार मिले रावण से,देओ कोई उपाय बताए।
तभी विभीषण ने बतलाया,रावण अमृत नाभि आए।
जब तक अमृत रहे नाभि में,मृत्यु रावण की संभव नाय।
चला तीर नाभि में पहले,अमृत उसका देवो सुखाय।
तभी जीत रावण को पाओ,हमने इतना दिया बताए।
जैसे भेद मिला अमृत का,खुशियां दिल में गई समाए।
शुरू लड़ाई हुई जैसे ही,प्रभु ने बाण किया संधान।
सूख गया नाभि का अमृत,खतरे में तब पड़ गए प्रान।
अगले ही पल प्रभू राम ने,शीश भुजा सब दीन्हे काट।
गिरा भूमि पर था दस कंधर,हा हा गूॅ॑जा शब्द विराट।
अंत हुआ पापी रावण का, गयो धरा से स्वर्ग सिधार।
जयघोष हुआ फिर दल में,मन में छाई खुशी हजार।
