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Mayuri Udage

Abstract

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Mayuri Udage

Abstract

खोई हु मैं।

खोई हु मैं।

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बैठे-बैठे कहीं खोई हु मैं

जागी हूं या सोई हूं मैं ?

सोते हुए जो देख नहीं सकती

वो सपना जागते हुए देख रही हूं मैं।


रोते-रोते कहीं हंसी भी हूं मैं

रोई हूं या हंसी हूं मैं ?

हसते हुए जान नहीं सकती

वो लम्हा याद कर रही हूं मैं।


चलते-चलते कहीं रुकी भी हूं मैं

चल रही हूं या जरा थम रही हूं मैं ?

चलते हुए जो जान नहीं सकती

वो सूकून पा रही हूं मैं।


कल को छोड के आज जो है,

वो लम्हा जी रही हूं मैं

यादों के इस महफिल में 

कहीं खोई हूँ मैं।


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