एहसास मर रहे हैं
एहसास मर रहे हैं
सूरज नई सुबह ले आता
नीलांबर घटित हो जाता
जीना फिर शुरू हो जाता
यंत्रवत सब चलता जाता
एहसास नहीं करते
कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते
हवा आती हमसे लिपटती
आसपास चिड़िया चहकती
धरती हमें गोद में उठाती
मां की तरह आंचल में छुपाती
एहसास नहीं करते
कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते
जल हमें जीवन देता है
अन्न धान, वनस्पति देता है
वृक्ष हमारे लिए जीते हैं
प्राणवायु फलफूल देते हैं
एहसास नहीं करते
कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते
हमारे पूर्वज
प्रातः धरा को नमन करते थे
प्रातः सूरज के दर्शन करते थे
वृक्षों को पुत्रवत पालते थे
प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहते थे
अब ना रहे पुराने आंगन वाले घर
ना कर पाते फलक को एक नजर
प्रकृति के सान्निध्य का अभाव
गलत आहार विहार का प्रभाव
तन मन का संतुलन बिगाड़ रहा
मानव मन अवसाद से भर रहा
एहसास मर रहे हैं
हम कृतघ्न हो रहे हैं।।