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Vinita Singh Chauhan

Abstract

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Vinita Singh Chauhan

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एक ठहरा हुआआँसू

एक ठहरा हुआआँसू

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जनाब... आँसू को

ना समझो कतरा पानी का 

यह तो फलसफा है जिंदगानी का

जाने क्या क्या समेट रखा है 

आँसू का ना कोई सानी है।

इसने अपने अंदर गहराई में

तभी तो यह खारा पानी है।


आॅ॑खों के किनारे ठहरा एक आँसू 

वर्षों से कितने दर्द छुपाए हुए 

मुस्कुरा रहा है मोती बनकर

कभी गमों को अपने अंदर छुपा कर 

कभी खुशियों को अपने अंदर छुपा कर


एक दिन लुढ़का गोरे गालों पर 

बन कर एक रुपहेली बूंद 

बहुत रोकना चाहा मैंने 

अपनी कसकर आॅ॑खें ली मूंद

पर आखें भरी हुई छलक ही गई।

और बूंद आँसू की टपक ही गई।।


सोचती हूं,

मन में वजन था दर्द का, 

या आँसुओं में वजन था गम का,

जो यह आँसुओं की बूंद टपकी, 

तो जाने क्यों मन हल्का हो गया। 

कुछ तो रिश्ता होगा जरूर,

मन और आँसुओं के बीच।

आँखों के किनारे ठहरा एक आँसू।

मन के अंदर कहीं दर्द के साथ आँसू।


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