मिसरी बनकर वही घुली है खारी सी तकरारों में, भरती अपनेपन की मिट्टी उभरी हुई दरारों में । मिसरी बनकर वही घुली है खारी सी तकरारों में, भरती अपनेपन की मिट्टी उभरी हुई दर...
व्यथा व्यथा
उठ खड़ा हो, फिर चलता, कहीं "दुत्कार" तो कहीं "दया का पात्र" बनता उठ खड़ा हो, फिर चलता, कहीं "दुत्कार" तो कहीं "दया का पात्र" बनता
मैं परे नहीं मैं पास नहीं मैं अधिक नहीं मैं क्षीण नहीं। मैं परे नहीं मैं पास नहीं मैं अधिक नहीं मैं क्षीण नहीं।
मानव कर सकता कल्याण अगर करे वो शब्द सम्मान। मानव कर सकता कल्याण अगर करे वो शब्द सम्मान।
कहने को स्वतंत्र हैं वो भावनाएं भी है कैद यहां। कहने को स्वतंत्र हैं वो भावनाएं भी है कैद यहां।