नविता यादव

Tragedy

4.8  

नविता यादव

Tragedy

मार्मिक गरीबी

मार्मिक गरीबी

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जीवन का अदभुत मार्मिक चित्रण यह भी

भूख, प्यास से व्याकुल जन जन भयभीत,

मलिन बस्तियों का हिस्सा बन,

बुनियादी सुविधाओं के लिए तड़पता ये।।


कई कारण हैं -इसके पीछे,

"प्रकृति", "आबादी" और

"शिक्षा "है "आंखें भींचे"

जूझ रहा है, हर घड़ी, हर पल,,,,

जीवन यापन हेतु भटकता क्षण- क्षण।


प्रतिदिन उठता, एक पल परिवार को देेख

हाथ जोड़ विनती प्रभु से करता,,,

आज कुछ काम मिल जाए,,,,

दो वक्त रोटी का इंतजाम हो जाएं।


बुढा, बच्चा या जवान,

अपनी- अपनी योग्यतानुसार

कर्म को अपना आधार बना

अपना जीवन यापन करता।


बड़ी कष्टकारी जिंदगी की सच्चाई ये,

आंखों में आसूं, मुख मंडल सुना,

बना धरती को अपना बिछौना,

भूखा पेट, अतृप्त आत्मा, 

कल की उम्मीद में आंखें

भींचे", क्रंदन" करता।


उठ खड़ा हो, फिर चलता,

कहीं "दुत्कार" तो कहीं

"दया का पात्र" बनता 


संभाल अपनी "अंतर्दशा" को,

जीविका हेतु भटकता रहता

जीविका हेतु भटकता रहता।


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