ये सब जानते हैं
ये सब जानते हैं
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हर रूह पर एक लिबास है, ये सब जानते हैं,
उतार उसे चले भी जाना है, ये सब जानते हैं,
जब भी आये, कई रूप धर महफ़िल में आये,
इनाम कैसे कितने वह पाए, ये सब जानते हैं।
हाकिमों की मुनादी में शोर जितना भी रहा है,
ख्वाब वह कैसे कब मिटाए, ये सब जानते है।
उगा है सूरज तो चाँद भी तो निकाला गया है,
औ तारों को किसने ठगा है, ये सब जानते हैं।
जुबान उसकी गूंगी कभी कुछ कहती कहाँ है,
लफ़्ज उसका तोड़ा गया है, ये सब जानते हैं।