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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

ये जिंदगी रुकती नही

ये जिंदगी रुकती नही

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ये जिंदगी कभी रुकती नहीं है

ये जिंदगी क़भी थमती नहीं है

कितना ही ये क्यों न टूट जाये,

ये जिंदगी कभी टूटती नहीं है


कितना सताएगी अरे जिंदगी,

कितना मनाएगी अरे जिंदगी,

ख़्वाब मेरे शीशे के ही सही,

पर तस्वीर तेरी मिटती नहीं है


जितना ज्यादा देगी तू गम

उतना ही टूटेगा मेरा भ्रम

आंसू देकर भी सूखती नहीं है

ये जिंदगी कभी रुकती नहीं है


इसे जितना सँघर्ष मिलता है

उतना ख़ुशी का फूल खिलता है

ये जिंदगी कभी रूठती नहीं है

कमल बनना कभी भूलती नहीं है


अपने को आसमाँ पे जाना है

अम्बर को धरती पे झुकाना है

उनसे जिंदगी बिगड़ती नहीं है

ये आलसियों से सँवरती नहीं है


कर्मवीरों से ये झगड़ती नहीं है

कर्मवीरों को ये सताती नहीं है

ये जिंदगी उनकी रुकती है,

जिनकी आंखों में ज्योति नहीं है!




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