बढ़ना होगा !!
बढ़ना होगा !!


चिंता से जब भर जाए मन
विपदा से ढक जाए नील गगन
अविरल धारा सी शोक बहे
जीवन पर अंकुश नहीं रहे
अंधेरे में दिया जला कर तब
श्रम का पर्वत चढ़ना होगा
नित शीश झुका बढ़ना होगा
रावण ने हर ली थी सीता
जब राम थे वनवास में
बस एक लखन को छोड़कर
था कौन उनके पास में?
निज पौरुष के सामर्थ्य से
पथ सिंधु पे भी गढ़ना होगा
नित शीश झुका बढ़ना होगा
जो लोग तुम्हें लाक्षाग्रह की
अग्नि में जलाना चाहते हैं
तेरी करुणा की तुलना वे
कायरता से करवाते हैं
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तब अर्जुन की भाँती रण में
अपनों से ही लड़ना होगा
नित शीश झुका बढ़ना होगा
जो मिट्टी हल की चोट सहे
फिर फूल उसी में खिलते हैं
सागर के अंधेरे तल में हीं
चमकीले मोती मिलते हैं
एक रोज़ शान से जीने को
हर रोज़ यहाँ मरना होगा
नित शीश झुका बढ़ना होगा
छोटी सीढ़ी वो चढ़ते हैं
जिनको बस छत तक जाना है
तेरा मुकाम तो अंबर है
रस्ता भी तुझे बनाना है
विपदाओं से घिर कर भी तुम्हें
विपदाओं से लड़ना होगा
नित शीश झुका बढ़ना होगा