राग दरबारी
राग दरबारी
कलम से बहती झूठ की धारा
नफरत इनको खूब है प्यारा
धर्म का करते हैं व्यापार
बिक कर छपते हैं अख़बार
रोज़ दिखाते हैं ये जलवे
चाट गए मालिक के तलवे
सच से इनका बैर पुराना
मक़सद पैसे खूब कामना
राष्ट्रवाद का पहन के चोला
सत्ता की गोदी में खेला
एक शहज़ादा हुकुम चलाये
जात धर्म पर खूब लड़ाये
खोद निकाले व्यर्थ की बाते
मिर्च मसाला ढूंढ के लाते
हर ले उसकी चिंता सारी
जेब करे जो इनकी भारी
देश कुशाषन से बदहाल
सत्ता पर जब उठे सवाल
दिखता ना जब कोई उपाय
सरहद की तब याद सताए
घर में पड़ोसी की हो बातें
उनके किस्से सबको सुनाते
इनसे जब हो कोई सवाल
कहते " दुश्मन की है चाल "
कोर्ट कचहरी व्यर्थ की बातें
फैसला ये मिनटों में सुना दें
जज वकील की क्या औकात
इंसाफ है होता इनके हाथ
त्याग प्रेम की मिटटी पर
नफरत की फसलें बोते हैं
दंगे भड़का कर मौज करें
ऐसे कुछ लोग भी होते हैं।