इनारा
इनारा
थी सुबह नयी शुरुआत नयी
सब व्यस्त थे अपने कामों में
थी चहल पहल चहुओर पसरी
सड़कों, गलियों और दुकानों में
थी हवा को महकाये कहीं
भीनी खुशबू कुछ फूलों की
कही कानों में बजती हुई
सुबह की घंटी स्कूलों की
जिस चौराहे पर पंडित जी
कृष्ण की पूजा करते थे
उसी चौराहे पे आलम भी
नमाज़ अदा किया करते थे
था भाईचारे का माहौल वहाँ
कोई व्यक्ति परेशान नहीं
थी अमन की ख़ामोशी वहाँ
नफ़रत का कोई निशान नही
फिर कहीं दूर किसी कोने में
नफ़रत की नागिन लहराई
अमन की उस ख़ामोशी पे
वो काल बनकर मंडराई
तब हिंसा ने सुख - चैन को
अपनी अग्नि में जला दिया
लोगों ने भी बिन कुछ सोचे
भाईचारे को भुला दिया
सब रिश्ते बंधन तोड़कर
अपनों से ही वो ऐंठे हैं
जलकर नफ़रत की आग में
खुद के दुश्मन बन बैठें हैं
कुछ लोगों के षड़यंत्र नें
हमको टुकड़ों में बाँट दिया
हम भाई कभी हुआ करते थे
हिन्दू मुस्लिम में छांट दिया
कहीं तलवार उठी किसी हाँथ में
अपनों पर ही चलाने को
कही मशाल जली किसी कोने में
अपना ही संसार जलाने को
वर्चस्व बचाने की खातिर
कैसा हमने ये कमाल किया
हरी भरी इस धरती को
मासूमों के खून से लाल किया
जिनपर थी ये ज़िम्मेदारी
शांति व्यवस्था बनाने की
वो खड़े प्रतीक्षा करते रहे
सारे शहर के जल जाने की
जिन्हे थी धर्म की ही चिंता
रोज़ टीवी और अखबारों में
वो जाके दुबककर बैठ गए
अपने ऊंचे दरबारों में
भाईचारे को मिटाने वालों
हम तुमको अब नहीं छोड़ेंगे
जो दीवार खड़ी की है तुमने
उसको पलभर में तोड़ेंगे
वो भाईचारा जो हमने कभी
खोया था अपने अभिमान में
उस मैत्री को वापस अब हम
जागृत करेंगे हर इंसान में
अब नहीं टिकेगा अन्धकार
फिर लौट आएगी खुशहाली
महक उठेंगे फूल सभी
फिर खिल उठेगी हरियाली
आओ इस नफरत को छोड़कर
हम एक दूजे का सम्मान करें
सुख शांति और समृद्धि से भरपूर
एक नए भारत का निर्माण करें
