"द्यूत सभा में द्रौपदी की पुकार"
"द्यूत सभा में द्रौपदी की पुकार"
तोहरे अंगुरी में हम बांधि रहे,
जब चक्र सुदर्शन के घाव रहे।
खियाल नहीं तोंहका रच्चउ,
जो आज हमहिं तू भूलि रहे।।
फाड़ि के साड़ी क पल्लू हो बिरना,
अंंगुरी में रोके तब खूनें का गिरना।
बांधि दिया अंगुली में जब धागा,
भइया बहिनी क तब प्रेम हो जागा।।
कहलअ भैया सुन ले मोरी बहिनी,
उतारब ऋण इ सूत में भगिनी।
उ मूर में जोखिम कबंउ न रहे,
यहि सोचि तो आज पुकारि रहे।।
इस द्यूत सभा में ना वीर रहे,
सब सजन तो आज अधीर रहे।
आवइ में जउ देर तू करबअ,
त इ बहिनी न तोहार रहे।।
देख दुशासन खींचत सारी,
द्यूत सभा में सजना सब हारी।
तोहरे बहिनी के न मान रहे,
त हमार तोहार न नाम रहे।।
का गलती हम कीन्ही हो भैया,
जो बूझत बाटअ हमका परैया।
बहिनी ना तोहार अब हांथ रहे।
सुन ल हो बिरना निहाथ रहे।।
बोलावत बाटी आवअ हो भैया,
बीच भंवर में फंसी मोरी नैया।
कसम वहि खूने क बांधि रहे,
सुनि ल हो बिरना निहारि रहे।।
