दो चुस्कियों की शाम
दो चुस्कियों की शाम
दुखित मन को तृप्त करो,
अपने तन को तृप्त करो।
लेकर दो चुस्कियों की शाम,
ए सुहानी शाम तृप्त करो।।
यह जिंदगी संघर्ष से भरी है,
पर बहुत उत्कर्ष से भरी है।
इसके अरमान तुम संवारो,
यह विचार विमर्श से भरी है।।
तुम सोचो यह आयाम क्यों है,
चुस्कियों की सुंदर शाम क्यों है।
व्यथित मन कहीं भटक न जाए,
जीवन संताप के अंजाम क्यों है।।
सुबह अपनी राह में जो जाए,
और शाम चुस्कियों में खो जाए।
वही जीवन तो सही जगमगाए,
जो विकास के बीज बो जाए।।
