"न पेट न भेंट"
"न पेट न भेंट"
क्षुधा तृष्णा के लिए मानव,
व्याकुल होकर निकलता है।
उसके राह में मिल जाते हैं,
जिसके दिल वह उतरता है।।
यह सब जिंदगी का खेल है,
जिसमें सब जीव विचरता है।
अनवरत तो चलता ही रहता,
जिससे ही जीवन संवरता है।।
यहां हर जीव को जीने के लिए,
ईश्वर ने बनाया एक सुंदर पेट है।
सुसज्जित हो उसका समाज भी,
जिससे उसका हर किसी से भेंट हो।।
हर किसी की जिंदगी आबाद हो,
इसी सोच में जीव से जीव मिले।
कैसा सृजन किया है प्रकृति ने यहां,
जो अपनी भूख मिटाकर वह खिले।।