हिन्दी
हिन्दी
भाषा नहीं है केवल यह
जन मन की अभिव्यक्ति है ।
बिन हिन्दी हिन्दुस्तान भी
एक बिना नाम का व्यक्ती है ।
'मद' को भी 'मंद' बना देना
इसकी बिंदी की शक्ति है ।
बिन हिन्दी हिन्दुस्तान भी
एक बिना नाम का व्यक्ती है।
अ के अनपढ़ से शुरु हुए
ज्ञ से ज्ञानी बन जाते है ।
इस मातृभाषा के कारण ही
हम हिन्दुस्तानी कहलाते हैं ।
इसका अभिमान बढ़ाना ही
विद्वता, प्रेम और भक्ति है।
बिन हिन्दी हिन्दुस्तान भी
एक बिना नाम का व्यक्ती है।
उर्दू हो ब्रज या बंगाली
इसके ही अनेको चेहरे है।
हर प्रांत में रूप बदलकर यह
हिन्दी के रूप ही ठहरे हैं
संस्कृतियों के महा सागर को
बाँधे रखती यह शक्ति है
बिन हिन्दी हिन्दुस्तान भी
एक बिना नाम का व्यक्ती है।
