अस्तित्व
अस्तित्व
ना तुम्हारी सत्ता का अधिकार मुझको चाहिए
ना ही धन और स्वर्ण का भंडार मुझको चाहिए ।
ना तुम बड़े ,न मैं बड़ी दुनिया हमारी एक है
ऐसे मेरे अस्तित्व का स्वीकार मुझको चाहिए ।
जग क्यूँ मनाए एक दिन केवल मेरे सम्मान का ?
क्यूँ एक दिन निश्चित हुआ आखिर मेरे गुणगान का ?
देवी नहीं इंसान हूँ इंसान की संतान हूँ
श्रद्धा नहीं संगीनी का उद्गार मुझको चाहिए ।
ऐसे मेरे अस्तित्व का स्वीकार मुझको चाहिए ।
तुम शुर वीर योद्धा हो तो मैं विश्व रण की चण्डिका ।
वाहक हो तुम जिसके मैं उस वंशध्वज की दण्डिका ।
तुम पुज्य जामाता हो,तो मैं क्यु बहु अपराधीनी?
परिवार त्यागा है तो एक परिवार मुझको चाहिए
ऐसे मेरे अस्तित्व का स्वीकार मुझको चाहिए।
तुम मर्द इज्ज़त के धनी कुछ मान बातों में रखो।
मैं ही क्यों पर्दों में रहूँ तुम शर्म आँखों में रखो।
रक्षक नहीं,साथी हो जो,मेरे साथ वो भी पुर्ण हो।
ऐसा जीवन स्तंभ का आधार मुझको चाहिए ।
ऐसे मेरे अस्तित्व का स्वीकार मुझको चाहिए ।
