मैं तुमको याद आऊंगी
मैं तुमको याद आऊंगी
कभी झुमका कभी चूड़ी कभी पायल बजाऊँगी
कभी आईना देखोगे तो उसमें मुस्कराऊंगी ।
बहुत आसान है कहना मगर ना भूल पाओगे
रहूँ या ना रहूँ लेकिन मैं तुमको याद आऊंगी
सुबह की चाय के कप में मुझे अदरक सा पाओगे
टिफिन रूमाल और मोजे मेरे बिन ढूंढ पाओगे?
कोई अच्छा खिलाएगा तो मेरा स्वाद ढूँढोगे
नमक ज्यादा भी होगा तो मैं तुमको याद आऊंगी।
मेरी छोटी सी गलती पर तुम्हारा मुंह फूला लेना
मनाने आने से पहले ही बच्चों को बुला लेना
कोई गलती ना होगी अब कोई नाराज ना होगा
मगर अब खुद की गलती पर, मैं तुमको याद आऊंगी।
तुम्हारे चुप से घबराकर मैं तुमसे लड़ लिया करती
तुम्हारे मौन और आँखों की भाषा पढ़ लिया करती
मगर अब ना कही तुमने तो कोई सुन ना पाएगा
कोई समझेगा ना तुमको मैं तुमको याद आऊंगी।
तुम्हारे घर के आंगन में मैं तुलसी सी महकती हूँ
दरो दीवार और छत पर भी मैं ही मैं तो बसती हूँ ।
कहां तक भाग पाओगे मेरी यादों के गुलशन से
कभी जब घर भी आओगे, मैं तुमको याद आऊंगी।
मुझे अफसोस है बच्चों का बचपन जी नहीं पाई
वो अमृत प्यारी बातों का, जी भरकर पी नहीं पाई ।
तुम्हें शायद पता हो वे कहानी सुन के सोते हैं
तुम उनको जब सुलाओगे, मैं तुमको याद आऊंगी ।
वचन वो सात फेरों के निभाकर आज चलती हूं
मैं तुमको प्रेम और रिश्ते से अब आजाद करती हूँ ।
विदा कर दो ख़ुशी से मांग मेरी भर के ओ साजन !
जरा सा मुस्कुरा देना मैं जब भी याद आऊंगी ।