देश प्रेम
देश प्रेम
यूँ देश प्रेम के नाम पे ये लकीरें खींचना बंद करो
इस त्याग प्रेम की धरती को, नफरत से सींचना बंद करो ।
जो देश को आगे रखते हैं, वे देश की खातिर लड़ते हैं
जाति मज़हब के नाम पे तुम, तलवारें खींचना बंद करो ।
इस भाषा प्रांत के चक्कर में, कहीं हिन्दुस्तान ना खो जाए
अन्दर ही अन्दर भारत की छाती को चीरना बंद करो ।
गर जोश है तो, सीमाएं है, जाओ और देश के साथ लड़ो
है प्रेम तो देश को दिखलाओ, बस बाते करना बंद करो।
खुद अपनी जान गंवाकर जो तुम तक आजादी लाए है
उन वतन के रखवालों को यूँ, शर्मिंदा करना बंद करो ।
