सदियों से सुन रहा हूं
सदियों से सुन रहा हूं
बेमेल शब्दों में।
दे रहा हूं, अभिव्यक्ति।
भाव तो बहुत उमड़ रहें।
व्यक्त करने की नहीं है शक्ति।
थपेड़े सहते-सहते सहम-सा गया हूं।
मौन रहते-रहते मुखरित हो रहा हूं।
लेकिन क्या करूं कभी भूला नहीं हूं।
इसलिए जो नहीं सुनना चाहिए।
वह सब सदियों से सुन रहा हूं।
भगवान सब करेंगे।
भाग्य के भरोसे जी रहा हूं।
लेकिन! मैंने आज स्वयं गीता पढ़ी।
अब भाग्य भरोसे नहीं।
कठिन कर्म की ओर बढ़ रहा हूं।
