"नारी"
"नारी"
नारी ने अपने लिए,
कभी कुछ मांगा नहीं।
दूसरों के लिए इतनी रही व्यस्त,
कभी अपने को जाना नहीं।
सुबह से शाम तक, जन्म से मृत्यु तक,
कर्तव्यों में उलझी रही।
बन्धनों में ऐसी जकड़ी,
आजादी कभी समझी ही नहीं।
स्वयं टूटकर घर गृहस्थी सम्हालती रही,
संकट के समय में भी, काम में लगी रही।
दूसरों की खुशी के लिए, अपने सपने छोड़ दिए,
ठोकरें खाने के बाद भी, हमेशा मुस्कुराते रही।।