जिन्दगी
जिन्दगी
मानव जीवन, माया का जाल है।
इसमें सब फंसे, यही तो कमाल है।
मानव निकलने की कोशिश कर उलझता जाता है।
मृगतृष्णा के पीछे निरन्तर भागता जाता है।
अंतहीन इच्छायें कभी पूरी नहीं होती,
सारी जिंदगी, भागम-भाग में बिताता है।।
