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J P Raghuwanshi

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3  

J P Raghuwanshi

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"शीतकाल"

"शीतकाल"

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जाड़े लगें भाई जाड़े लगें,

अगहन-पौष में जाड़े लगे।

दिन हैं छोटे, रातें बड़ी,

डारे बिछौना डुकरो पड़ी।


घर-घर देखो अलाव जलें,

टोपा मफलर अच्छे लगे।

कहूं-कहूं देखो महावट गिरे,

खड़ी फसल को फायदा करें।


गुड़ की जलेबी, घर-घर बने,

मोड़ा-मौड़ी मगन रहें।

कैसो मौसम सुखदाई,

देखो शीत ऋतु आई।।


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