मातृ देवो भव ! पितृ देवो भव !
मातृ देवो भव ! पितृ देवो भव !
जो मात पिता हैं पूज्य अरे !
तुम उनको क्यों ठुकराते हो!
जिन्होंने तुमको पाला पोसा
उनको ही अकड़ दिखाते हो।
बचपन में जब रोते देखा तो,
तुम्हें गोद में उठा लिया।
थोड़ा भी देखा दुखी अगर,
चूमा पुचकारा प्यार किया।।
उपकार अपार किये इन्होंने,
क्या उन सबको तुम भूल गए।
इन्होंने तुमको सब योग्य किया,
अब मद में आकर फूल गए।।
अब समर्थ होकर तुम
इन पर रौब जमाते हो।
जिन्होंने तुमको पाला पोसा
उनको ही अकड़ दिखाते हो।।
स्वयं भूखा रहकर माॅं ने,
तुमको भर पेट खिलाया था।
खुद तो गीले में सोई माॅं,
सूखे में तुम्हें सुलाया था।
नस नस में माॅं के आंचल का,
जो दूध प्रवाहित होता है।
तुम उसे कलंकित करते हो,
यह देख पत्थर भी रोता है।
इन्होंने तो फूल बिछाए,
मगर तुम कांटे क्यों बिछाते हो ?
जिन्होंने तुमको पाला पोसा
उनको ही अकड़ दिखाते हो।।
तुम लाखों रोज कमाओ मगर,
थोड़ा भी लाभ नहीं इनको।
तुम दुनियां से आदर पाओ,
पर इससे क्या मिलता इनको।
यदि इनकी सेवा करके तुम,
संतुष्ट नहीं रखते इनको।
तो जग के सारे सुख साधन,
कांटे बन जायेंगे तुमको।
इसलिए दुआयें लो इनकी,
क्यों इनका हृदय दुखाते हो ?
जो माता पिता हैं पूज्य अरे !
तुम उनको क्यों ठुकराते हो।
इन्होंने तो निश्छल प्यार दिया,
तुम इनसे कटुता रखते हो।
क्यों तुनक तूनक कटु वचनों से
इनका मन छलनी करते हो।
यदि मात पिता से नफ़रत का,
व्यवहार कारोगे तो सुन लो।
वैसे ही अपने पुत्रों से तुम पाओगे।
तुम भी दुत्कारे जाओगे,
क्यों अभिमान दिखाते हो ?
जो मात-पिता हैं पूज्य अरे !
तुम उनको क्यों ठुकराते हो।
