पछताएंगे हम सब कल
पछताएंगे हम सब कल
उपवन सिमटे गमलों में,
कैद प्रकृति घर बंगलों में।
नकली तितली भॅंवरे चिपके,
संगमरमरी महलों में।।
ज़हर उगलते वाहन दल,
व्याप्त मशीनी कोलाहल।
वायु हो गई दम घोंटू,
दूषित पानी देते नल।।
स्वाद नहीं शुद्धता नहीं,
रोग व्याधियाॅं सता रहीं।
आज यदि हम नहीं चेते,
कल क्या होगा पता नहीं।।
पक्षी-पेड़, फूल और फल,
खनिज तत्व नदियों का जल।
होते रहे नष्ट यहीं,
पछतायेंगे हम सब कल।।
