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मोहन सिंह मानुष

Abstract

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मोहन सिंह मानुष

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मैं शिक्षक हूं वर्तमान का !

मैं शिक्षक हूं वर्तमान का !

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मैं शिक्षक हूं वर्तमान का,

मुझे बच्चों से डर लगता है,

मजबूर-सा हूं पढ़ाने में,

बेरोजगारी से डर लगता है।


सम्मान-वम्मान जुति बराबर

मगर लाचारी से डर लगता है,

अध्यापन ही एक काम नहीं

अतिरिक्त कार्य बहुत से होते है,


मालिक बड़े ही प्रताड़ित करते,

सैलरी रुकने से डर लगता है।

क़तरा-क़तरा ख़ून निचोड़े

फिर जेब से पैसा निकलता है,


ना पढ़ाएं तो खानें के लाले,

भूखमारी से डर लगता है।

गुरु है , गोविंद समान ,

कहने को अच्छा लगता है।


मैं अध्यापक हूं निजी संस्थान का,

दुत्कारी से डर लगता है।


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