चलो फिर से कुरेदते हैं।
चलो फिर से कुरेदते हैं।
बीती सुध को,
चंद निमेषों को,
अनुराग भरे संदेशों को,
चलो फिर से कुरेदते है।
क्या अनुपम वेला!
आह्लादों का मेला!
प्रेम-क्रीड़ा से, मैं था खेला,
गुजरे वक्त की किताबों को,
चलो फिर से खोलते हैं।
क्षत को,
चलो फिर से कुरेदते है।
टीस की घुट्टी,
दर्द का तूफान,
बेचैनियों की सरसराहट
आया उफान,
तनहाई के पत्तों को,
चलो फिर से बिखेरते हैं,
अभागी नियति को,
चलो फिर से कुरेदते हैं।