जब-जब अकेला होता हूं
जब-जब अकेला होता हूं
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मैं जब-जब अकेला होता हूं,
दर्द के संताप को,
बाहों में लेकर रोता हूं।
खो जाता हूं ,उन यादों में,
उलझे हुए उन ख्वाबों में,
वक्त की जबरई को,
गले लगाकर; खो जाता हूं,
जब-जब अकेला होता हूं।
कभी अपना ही,कभी औरों का ,
गम देखकर, मैं हैरान-सा
नींदों को भगाए रहता हूं,
जब जब अकेला होता हूं।