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मोहन सिंह मानुष

Tragedy

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मोहन सिंह मानुष

Tragedy

जब-जब अकेला होता हूं

जब-जब अकेला होता हूं

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मैं जब-जब अकेला होता हूं,

दर्द के संताप को,

बाहों में लेकर रोता हूं।

खो जाता हूं ,उन यादों में,

उलझे हुए उन ख्वाबों में,

वक्त की जबरई को,

गले लगाकर; खो जाता हूं,

जब-जब अकेला होता हूं।

कभी अपना ही,कभी औरों का ,

गम देखकर, मैं हैरान-सा

नींदों को भगाए रहता हूं,

जब जब अकेला होता हूं।


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